Saturday, August 21, 2010

"आशा"

आशा ही जीवन है, सुनने मे बड़ा अच्‍छा लगता है लेकिन अगर देखा जाये तो अपने देश में क्‍या ये संभव है। क्‍योंकि आशा स्‍त्रीलिंग है, जीवन पुलिंग और अपने देश में आशा और जीवन के बीच कितना अन्‍तर है ये बताने की जरूरत नही है। जहाँ आशा को किसी श्राप से कम नही समझा जाता हो वहाँ कैसे कह सकते हैं कि आशा ही जीवन है।

आशा ही जीवन है, इसी सोच के साथ रोज एक नई पार्टी का जन्‍म होता है। नेता दल बदलते रहते हैं कि शायद किसी पार्टी से तो टिकिट मिलेगा, कोई पार्टी तो बहुमत मे आयेगी, कोई तो मंत्री बनायेगा।

आशा तो है जो लाखों लोगों को अपना काम छोड़ के टीवी के आगे बैठने में मजबूर करती है कि कभी तो शायद अपने भी महारथी {क्रिकेट टीम } कुछ कर दिखायेंगे।

शायद इसी आशा के दम पर कुछ लोग विलुप्‍त होती अपनी राष्‍ट्र भाषा को जिंदा रखे हुए है। और ये आशा ही है जो शायद आदमी को नपुंसक बनाती है, क्‍योंकि ‘आशा ही जीवन’ की माला जपते हुए वो हाथ मे हाथ रख कर बैठा रहता है।

और ये आशा ही है जो छोटे-छोटे बच्‍चों को देख कर मुझे भी ये कहने मे मजबूर करते है कि शायद ‘आशा ही जीवन’ है।

आशा ही जीवन है इसका मतलब यही होता है की आज का काम कल पर छोड़ दो और आपनी समस्या दुसरे के भरोसे छोड़ देते है की वही हल करेगा लेकिन क्या यह सही है ?

"आशा ही जिंदगी / जीवन है सिर्फ सुनाने में अच्छा लगता है, बस और कुछ नहीं है "...सुरेन्द्र

Sunday, June 6, 2010

देसी “स्टार्ट अप बिजनेस

अमेरिका की सिलिकॉन वैली मशहूर है सूचना तकनीकी क्षेत्र की लाखों डॉलर वाली “स्टार्ट अप बिनजेस” कंपनियों के लिए। यानी ऎसी कंपनियां जिनकी शुरूआत करने के लिए निवेशक डॉलरों के थैले लिए खड़े रहते हैं। ये है हमारा इंडिया गेट, दिल्ली का स्टार्ट अप व्यापार। चार ईंट जुटाई, उस पर रखा टीन का एक पुराना टुकड़ा और चंद कोयले। बस, शुरू हो गया गर्मागर्म भुट्टे का व्यापार और भुनते भुट्टे की खुशबू से टूट पड़े ग्राहक..........................

Sunday, February 14, 2010

वंदे मातरम् ।




वंदे मातरम् ।
सुजलाम् सुफलाम् मलयज् शीतलाम्
सस्यश्यामलम् मातरम् ।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिणिम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् ।।
वंदे मातरम् ।

Friday, January 29, 2010

सुरक्षित-ऊर्ज़ा तथा पर्य़ावरण


हाल की एक अंतर्राष्ट्रीय़ रिपोर्ट में बताय़ा गय़ा हैं कि भारत की ओंर से हो रही ग्लोबल वॉर्मिंग य़ा वैश्विक-तापऩ में 19-प्रतिशत वॄहद बाँधों के कारण हैं। विश्वभर के वॄहद बाँधों से हर साल उत्सर्ज़ित होऩे वाली मिथेऩ का लगभग 27.86-प्रतिशत अकेले भारत के वॄहद बाँधों से होता हैं, ज़ो अऩ्य़ सभी देशों के मुकाबले सर्वाधिक हैं । हाल ही में संय़ुक्त राष्ट्र के ख़ाद्य़ अधिकारों संबंधी एक विशेषज़्ञ ऩे कुछ मुख़्य़ ख़ाद्य़ फसलों के ज़ैविक-ईंधऩ (बाय़ोफ्य़ूल) हेतु प्रय़ोग पर चिऩ्ता व्य़क्त करते हुय़े चेतावऩी दी हैं कि इससे विश्व में हज़ारों की संख़्य़ा में भूख़ से मौतें हो सकती हैं । चाहे वह ख़ाद्य़-फसल हो य़ा अख़ाद्य़ कॄषि में ज़ैव ईंधऩ की ऩिर्माण सामग्री उगाऩे से ज़ैव-विविधता, ख़ाद्य़-सुरक्षा तथा पर्य़ावरण को पहुँचते ऩुकसाऩों को लेकर विश्व के कई भागों में चिऩ्ता प्रकट होती रही हैं ।